Monday 20 April 2020

गुलमोहर तुझसे मेरा रिश्ता क्या है!


गुलमोहर अचानक खिलते हैं। किसी सुबह उठो तो पता चलता है कि वह पेड़ जो बीते कल तक सिर्फ हरी पत्तियों और टहनियों का पर्याय था, अचानक फूलों से लद गया होता है। फूलों का रंग भी ऐसा कि सबका ध्यान अपनी ओर खींच ले लेकिन वैसा चटक भी नहीं जैसे पलाश के फूल होते हैं! एक संतुलन भरा सम्मोहन! इसलिए भी गुलमोहर, गुलमोहर है। वह एक सरप्राइज़ की तरह आता है!
लेकिन मुझ जैसों के लिए जिसे इस मौसम में अपने पुराने कैंपस (हैदराबाद विश्वविद्यालय) के गुलमोहर की याद शिद्दत से आ रही हो, यह किसी भी सरप्राइज़ से बड़ा; वाकई बहुत बड़ा सरप्राइज़ था कि आज सुबह खिड़की खोलने पर लगभग सौ-डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर पेड़ पर लदे फूल जैसे कह रहे थे, विश्वास करो मैं गुलमोहर ही हूँ! यह एक ऐसा अद्भुत अनुभव था; जिसे शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता। मैं गुलमोहर के पेड़ पहचानती हूँ; लेकिन इतने दिनों से पता नहीं क्यों उस पेड़ पर कभी नज़र ही नहीं पड़ी और इसलिए इस बार गुलमोहर के फूलों ने ही उस पेड़ से परिचय करवाया। वैसे भी गुलमोहर के पेड़ों की साल भर की तपस्या का हासिल इन दिनों में खिलने वाले ये फूल ही तो होते हैं! जो देखा उसे खिड़की से ही कैमरे में उतारने की कोशिश की, जैसा उतर सका साझा कर रही हूँ।

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