भारत के जिन राज्यों
में कोरोना संक्रमण के शुरूआती मामले देखे गये थे, उनमें
केरल भी शामिल था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस तरह की खबर बार-बार ध्यान खींच रही
है कि भारत में कोरोना से कारगर तरीके से निपटने में केरल सबसे अग्रणी रहा है।
कोरोना पीड़ितों की रिकवरी दर और नये संक्रमणों की रोकथाम को लेकर केरल की खूब
तारीफ हो रही है। इसके लिए केरल सरकार और स्थानीय प्रशासन के प्रबंधन और सक्रियता
की तो तारीफ हो रही है- मलयाली जीवनशैली की कुछ अन्य विशेषताओं ने भी लोगों का
ध्यान खूब खींचा है। इन्हीं में एक है वहाँ की स्वास्थ्य के प्रति बेहद सजग नजरिये
के साथ विकसित हुई खान-पान की संस्कृति। उनकी खान पान की स्वस्थ आदतों को; मजबूत इम्यून सिस्टम का कारण मानकर; केरल वालों की
खूब तारीफ हो रही है। हो भी क्यों न!
अपनी
केरल यात्रा की यादें अब भी ताज़ा है। 2018 अंत में जब केरल गयी थी तब दिसम्बर में
उत्तर भारत में पड़ने वाली कड़ाके की ठंड की तुलना में वहाँ ठीक विपरीत मौसम था।
चिलचिलाती धूप और पसीने से तर-ब-तर कर देने वाला मौसम! कभी-कभी राहत पहुँचाती
बारिश की फुहारें! लेकिन इस गरम मौसम में भी एक मलयाली मानुष को आप त्रिशुर स्टेशन
पर आइआरसीटीसी कैंटीन में गरम पानी के बदले ठंडा पानी परोसने पर टोकते हुए और नाराजगी
जाहिर करते हुए सुनेंगे तो आपको कैसा लगेगा? मुझे कुछ भी
अजीब नहीं लगा क्योंकि यह मेरी वापसी के समय का प्रसंग था; और तब तक मैं स्थानीय
खान पान की आदतों से न सिर्फ परिचित हो गयी थी बल्कि पिछले तीन दिनों से उसी खान
पान का लुत्फ भी उठा रही थी। इसलिए समझ पा रही थी कि कुछ-कुछ लाल रंग लिए गरम पानी
यहाँ के स्वास्थ्य सजग लोगों के जीवन का सहज हिस्सा है।
केरल
बेहतरीन गुणवत्ता के मसालों का प्रचूर मात्रा में उत्पादन करने वाला राज्य है।
इसके बावजूद कम से कम मेरा अपना अनुभव यही रहा कि यहाँ भोजन बनाने में तेल-मसालों
का बहुत कम उपयोग किया जाता है। इस बात का अनुभव आपको वहाँ के हर छोटे-बड़े
रेस्टोरेंट में होगा। सब्जियां तो प्रायः लगभग उबली हुई होती थीं। मैं जहाँ ठहरी
हुई थी वहाँ हर बार भोजन के साथ मीठे के नाम पर सिर्फ केला ही परोसा गया। सुबह के
नाश्ते,
दोपहर के भोजन और रात के खाने के साथ- पका केला, उबला हुआ केला या फिर भुना हुआ या फिर केले से ही बना कुछ और। ऐसा माना
जाता है कि केला मीठा खाने की इच्छा की पूर्ति तो करता है और साथ ही भोजन को पचाने
में भी बहुत मदद करता है। चावल के नाम पर वहाँ अधिकतर लोग मोटा चावल खाना ही पसंद
करते हैं। चावलों में मोटे चावल स्वास्थ्य के लिए तुलनात्मक रूप से बेहतर माने
जाते हैं।
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[यह तस्वीर मैंने एक दिन त्रिशुर में खाने से पहले थी] |
अब
फिर से गरम पानी का ज़िक्र। केरल के खान-पान में मुझे सबसे ज्यादा जिस चीज़ ने
आकर्षित किया था; वह यहाँ परोसे जाने वाला पानी
ही था। मुझे बाताया गया कि वहाँ लोग साल के बारहों महीने खाने के साथ गरम पानी ही
पीना पसंद करते हैं। पारंपरिक तौर पर भी और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के मत से भी
ठंडे पानी की जगह गरम पानी का उपयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत-बहुत अधिक
लाभकारी माना जाता है। लेकिन यहाँ सिर्फ सादा गरम पानी कहाँ; औषधीय गुणों वाले खास किस्म की जड़ी-बूटियों के साथ उबाला हुआ पानी
इस्तेमाल किया जाता है और यही कारण है कि उस पानी का रंग लालिमा लिए होता है। खाने
के साथ, खाने से पहले और खाने के बाद जड़ी-बूटी युक्त हल्के
लाल रंग का पानी पीना। जब पहली बार मुझे वह पानी पीने को मिला तो मुझे लगा कि पानी
गंदा तो नहीं, शायद ग्लास अच्छे से साफ नहीं किया गया हो।
मैंने वो पानी सिंक में फेंककर दूसरे ग्लास में जग से फिर से पानी उड़ेला। फिर से
पानी का वही रंग और गरमाहट तो थी ही। लेकिन तभी देखा कि सामने वाले टेबल पर उसी
रंग का पानी ग्लास में उड़ेल कर मजे से पिया जा रहा है। डरते-डरते मैंने भी पानी
को हल्का सा टेस्ट किया और वह पानी मुझे अच्छा ही लगा। सादा गरम पानी मुझसे पिया
नहीं जाता रहता तो उन जड़ी बूटियों का ही कमाल कहेंगे कि वह पानी मुझे ठीक लगा,
बल्कि धीरे-धीरे बहुत स्वादिष्ट लगने लगा था। मैं खाने के मेज पर उस
पानी के परोसे जाने का इंतजार किया करती थी। खाना कम खाया जाता था और वह पानी कई
ग्लास पी जाती थी। हर बार पानी पीते हुए यही सोचती थी कि कुछ दिन य़हाँ रह जाऊं तो
मैं ये गरम पानी पी-पी कर ही स्वस्थ और एकदम पतली हो जाउंगी।
जहाँ
मिठाई के नाम पर ज्यादातर किस्म-किस्म के उबाले या भुने, पके या कच्चे केले से बने व्यंजन खाये जाते हों, और
गर्मी में भी गरम और जड़ी-बूटी युक्त पानी पिया जाता हो, वहाँ
की खान पान की संस्कृति तो अनुकरणीय होगी ही।
हम
लोगों की आदतें तो ये हैं कि कोरोना काल में बाज़ार बंद हुए तो हम सब खुद ही वो
सारी चीज़ें घरों में ही बनाने लग गये। बेहिसाब तली-भुनी, मसालेदार और मीठी चीज़ें- मानो पकौड़े-समौसे-मिठाईयों की दुकान और ढ़ाबे हमने अपने-अपने किचन में ही खोल लिये थे। इसकी कीमत भी कोई और नहीं हम ही
चुकाएँगे। खान-पान के मामले में हम केरल से थोड़ा-कुछ तो सीखें!
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